*जनता से जुड़े मुद्दे भी चुनाव जीतते हैं !*
*-अन्ना दुराई*
हम जिन मुद्दों के लिए दूसरों की बूराई करते हैं, यदि हम भी वही करें तो हम में और अन्य में फर्क क्या। देश के राजनीतिक दलों की यही स्थिति है। खासकर सत्ता पक्ष अपनी हर बुराई को ढकने के लिए दूसरे दलों को निशाना बनाता है। भ्रष्टाचार की बात करो तो सत्ता पक्ष का जवाब होगा, पुरानी सरकार में भी था। बात गैरबराबरी की हो या बेरोजगारी की, महंगाई की हो या शिक्षा चिकित्सा से जुड़े सरकारी संस्थानों की, बिजली की हो या पानी की, गड्ढेदार सड़क की हो या ड्रेनेज की, अस्त व्यस्त यातायात की हो या रोज रोज थोप दिए जाने वाले नियम कायदों की, हमेशा एक ही बात सुनने को मिलती है कि दूसरे शासन में भी दशा खराब थी। अपने पर लगने वाले आरोपों का इस तरह होने वाला बचाव समझ से परे है। दूसरों को कोसने से स्वयं की नाकामियों को ढका नहीं जा सकता। दूसरों को नीचा दिखाने की बजाय स्वयं को अपने काम के आधार पर ऊंचा उठाने का लक्ष्य होना चाहिए। जनता द्वारा समय समय पर सरकारें भी इसी नियत से बदली जाती है लेकिन होता यही है कि सुनियोजित काम की बात करें तो जनता की झोली खाली नजर आती है।
कुल मिलाकर समस्या चाहे जो हो, सिर्फ लीपापोती का काम होता है। अपनी कमियों को छिपाने के लिए दूसरों की कमियों को उघाड़कर काम चलाया जाता है। आम जनता के साथ सरोकार, सरकार बनते ही सरक जाता है। होती है सिर्फ टीका टिप्पणी। उल जलूल बयानबाजी और लफ्फाजी। सरकार जिसे जनता के काम की चीज बताकर उसका महिमामंडन करती है, करोड़ों रूपए खर्च कर देती है, वो बेकाम की हो जाती है। जिसकी जैसी मर्जी वो मेट्रो वहां से निकाल देता है। कभी नीचे से कभी ऊपर से। कभी इधर से, कभी उधर से। शहर के शहर बेतरतीब और तहस नहस से दिखाई देते हैं। स्मार्ट सिटी बदसूरत नजर आती है और भोली भाली जनता नरक भोगने को मजबूर। सोचता हूँ 2047 के लिए मैं अपना आज क्यों बिगाडू़। नेताओं की कोई सोच नहीं कोई दिशा नहीं। जितने काम बताए जाते हैं उसमें फायदा जनता का या किसी और का, समझने की बात है। आए दिन नेताओं के होर्डिंग, कटआउटों से शहर पटा नजर आता है। स्वयं को जनता का सेवक बताने के लिए लाखों रूपए खर्च किए जाते हैं। जनसेवा का ऐसा जुनून भी देखते ही बनता है। नेताओं को खास की बजाय वास्तविकता में आम हितैषी बनना होगा।
अमेरिका जैसे अति विकसित देश में हाल ही में न्यूयार्क सिटी में मेयर का चुनाव जीतने वाले जोहरान ममदानी ने यह साबित कर दिया कि समय आने में समय जरूर लगता है लेकिन नफ़रत की राजनीति हारती है और आम जनता के हितों से जुड़े मुद्दे भी चुनाव जीतते हैं।
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