हिन्दू धर्म की तुलना आरएसएस से किया जाना हिंदू सनातन धर्म का अपमान, संघ प्रमुख मोहन भागवत सनातन धर्मावलाम्बियों से मांगे माफी : दिग्विजय सिंह
भोपाल। राज्यसभा सांसद एवं मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत द्वारा हाल ही में बैंगलोर में दिए गए वक्तव्य की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि डॉ. भागवत ने संघ के पंजीकृत नहीं होने की तुलना हिंदू धर्म के पंजीकृत न होने से करके सनातन धर्म को मानने वाले करोड़ों लोगों की आस्था का अपमान किया है।
अपने पत्र में दिग्विजय सिंह ने कहा कि हिंदू धर्म की जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं, जबकि आर.एस.एस. एक शताब्दी पुराना संगठन मात्र है।
उन्होंने स्पष्ट कहा कि “संघ को हिंदू धर्म से जोड़ना न केवल ऐतिहासिक रूप से गलत है बल्कि यह करोड़ों सनातन धर्मावलंबियों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाला है। संघ यदि स्वयं को धर्म का प्रतिनिधि बताता है तो यह उसके अहंकार और अज्ञान का प्रमाण है।”
संघ के पंजीकरण और आर्थिक पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न उठाते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा कि आर.एस.एस. की स्थापना से लेकर आज तक उसने देश के कानूनों और संवैधानिक व्यवस्थाओं से दूरी बनाए रखी है।
उन्होंने सवाल उठाया कि “देशभर के लाखों स्वयंसेवी संगठन ‘सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860’ के तहत पंजीकृत हैं और नियमित रूप से अपनी आय-व्यय का ब्यौरा सरकार को देते हैं। फिर संघ इस नियम से खुद को ऊपर क्यों समझता है? करोड़ों रुपए के बजट और 250 करोड़ रुपए की लागत से दिल्ली में बने कार्यालय का हिसाब संघ जनता के सामने क्यों नहीं रखता?”
दिग्विजय सिंह ने कहा कि डॉ. भागवत द्वारा यह कहना कि “संघ अंग्रेजों से लड़ रहा था”, पूर्णतः ऐतिहासिक असत्य है।
उन्होंने कहा “भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कहीं भी संघ की कोई भूमिका नहीं दिखती। 1925 से 1947 तक जब देश महात्मा गांधी, नेहरू और सरदार पटेल के नेतृत्व में अंग्रेजों से संघर्ष कर रहा था, तब संघ के लोग आंदोलन से दूर रहे। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और अशफाक उल्ला खाँ जैसे क्रांतिकारी फाँसी के फंदे पर झूल गए, लेकिन संघ का कोई कार्यकर्ता आजादी की लड़ाई में जेल नहीं गया।”
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि संघ स्वयं को “गैर-राजनीतिक सांस्कृतिक संगठन” बताता है, जबकि उसके प्रचारक सीधे राजनीति में जाकर सत्ता का लाभ उठाते हैं।
उन्होंने कहा “एक ओर संघ स्वयं को राष्ट्रभक्त संगठन बताता है, दूसरी ओर उससे जुड़े कुछ लोग देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं। संघ के वरिष्ठ नेता स्वयं स्वीकार करते हैं कि हजारों स्वयंसेवक बीफ खाते हैं यह उनके तथाकथित ‘संस्कृति-रक्षक’ स्वरूप की वास्तविकता को उजागर करता है।”
दिग्विजय सिंह ने दो टूक शब्दों में कहा कि हिंदू धर्म किसी संगठन या संस्था का मोहताज नहीं है। उसके शाश्वत सिद्धांत वेद-पुराणों और उपनिषदों में निहित हैं, न कि किसी शाखा या प्रचारक में। डॉ मोहन भागवत को हिंदू धर्म और संघ की तुलना करने वाले अपने शब्द वापस लेकर, सनातन धर्म को मानने वाले करोड़ों हिंदुओं से सार्वजनिक रूप से माफी माँगनी चाहिए।
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