नेता सब भगवान भरोसे और जनता राम भरोसे -अन्ना दुराई*

*नेता सब भगवान भरोसे और जनता राम भरोसे !*

*-अन्ना दुराई*

त्यौहार रोशनी का है, इसलिए उम्मीद की लौ अभी भी रह रहकर उठती रहती है। आशा की किरण है जो मन के द्वार पर अपनी दस्तक देती रहती है। इस खास मौके पर बात भी खास की ही होगी जिनका जिम्मा आम नागरिकों को समस्या रहित जीवन देने का है। लेकिन ऐसा कुछ दिखता नहीं। सारे नेता भगवान भरोसे हो गए हैं और जनता को राम भरोसे छोड़ दिया है। शहर हो या कस्बे पागल से हो गए हैं। बेतरतीब और बदहाली से रेगते हुए। यातायात की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। बाहर निकलने वाला प्रत्येक नागरिक गुत्थम गुत्था होते हुए इस दर्द को भुगतता है। सड़कों की दशा ख़स्ताहाल नजर आती है। मुख्य सड़कों के साथ साथ अब तो गलियाँ भी बेजार है। पेयजल हो या ड्रेनेज, बिजली हो या पर्यावरण सुरक्षा, सरकारी शिक्षा हो या चिकित्सा, कहीं कुछ सुधार नजर नहीं आता। भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं। आदमी रिश्वत देकर जायज काम कराता है और खुश हो लेता है।

कोई कह सकता है, क्या त्यौहार पर मायूसी वाली बात। लेकिन यह सोलह आने सच है। खुशियां भी अब प्राकृतिक नहीं बल्कि दिखावटी हो गई हैं। हम खुश होते नहीं बस अपने आपको खुश दिखाना पड़ता है। हमारी मुस्कुराहट सिर्फ फोटो खिंचवाने तक सीमित रहती है। डर लगता है, कब कौनसा विवाद खड़ा कर दिया जाए। कब ऐसा आदेश आ जाए कि आप हमारे घर के सामने से नहीं निकल सकते। यदि कहीं जाना हो तो रास्ता बदल कर जाओ। समझ नहीं आता कि कुछ भी बोल जाने या कर गुजरने का ये अधिकार मिलता कहां से है। इतनी सारी सेनाएं और संगठन सुरक्षा देने के नाम पर खड़े हो गए हैं कि असली जवानों की तो सार्थकता ही समाप्त सी प्रतीत होती है।

कह सकते हैं, नित नई लच्छेदार, लुभावन घोषणाओं के बम फूटते हैं। अनार की तरह उल्लास और उमंग बरसाई जाती है। चकरी की तरह दावों के चक्कर में सबको घन चक्कर बनाया जाता है। फुलझड़ी की तरह सभी के मन को प्रफुल्लित किया जाता है। मैं हैरान हूँ, रोज जनता के हित में इतने सरकारी दावे होते हैं। घोषणाओं की भरमार रहती है। हमारी धरती स्वर्ग जैसी हो जाएगी। ऐसे ऐसे सपने बांटे जाते हैं, लगता है मानों सब कुछ पा लिया हो। वास्तविक धरातल पर कुछ दिखता नहीं। यदि सरकारी दावे प्रतिदावों की एक सूची तैयार करें तो लाभ नगण्य ही प्रतीत होता है। ये हब, वो हब। ये कारीडोर, वो कारीडोर, ये हो जाएगा, वो हो जाएगा। इसमें नंबर बन, उसमें नंबर वन। घोषणाएँ ऐसी ऐसी की विकसित देश भी शरमा जाए। योजनाएं ऐसी ऐसी, मानों क्या नहीं पाया हो। कभी चूहों को खत्म करने की योजना, कभी नालों को नदी बना देने के सपने। कभी आवागमन के साधनों तो कभी पुल के नाम पर, समझ नहीं आता सब कुछ इतना अनियंत्रित सा क्यों। वाकई हमारे नेतृत्वकर्ताओं को मंदिर मस्जिद, हिन्दू मुस्लिम की बजाय आम नागरिकों के मन में अपनी कार्य कुशलता के साथ आशा का एक दिया जलाना ही होगा। तभी वे कहलाएँगे इस शहर के असली धनी धोरी।

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